निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
भूख आज जमीं पर गुहार कर रही थी। छोटी से एक बच्ची गरीबी में पल रही थी। भूख आज जमीं पर गुहार कर रही थी। छोटी से एक बच्ची गरीबी में पल रही थी।
दो जून की रोटी कोई घी-शक्कर संग खाता है कोई सूखी ही चबाता है। दो जून की रोटी कोई घी-शक्कर संग खाता है कोई सूखी ही चबाता है।
मैं यूँ ही नहीं आता जाता गुनगुनाता इठलाता हँसता और हंसाता हूँ ! मैं यूँ ही नहीं आता जाता गुनगुनाता इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !
तेरा कल नहीं मै अजीब सितम है,अब तो तेरा आज भी मुझसे आंख मिलाए ना तेरा कल नहीं मै अजीब सितम है,अब तो तेरा आज भी मुझसे आंख मिलाए ना
गरीब को वर्तमान की दो जून की रोटी का फ़िक्र है। गरीब को वर्तमान की दो जून की रोटी का फ़िक्र है।